आज की कविता रैदास महाराज जिन्हे हम गुरु संत रविदास नाम से जानते हैं इसलिए आपके लिए रैदास जी पर कविता या गुरु रविदास पर कविता हिन्दी मे लिखी गई जिन्हे आप अपने कक्षा में पड़ याद कर सकते है चाहे आप किसी 1,2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10, 11, 12 कक्षा के क्षात्र हो।
गुरु रविदास का जन्म काशी में माघ पूर्णिमा के दिन रविवार को संवत 1433 को हुआ था। रैदास जी ने साधु -संतों की संगति से पर्याप्त व्यावहारिक ज्ञान प्राप्त किये थे। वे जूता बनाने के काम किया करते थे और ये उनका व्यवसाय था और अपना काम पूरी लगन तथा परिश्रम से करते थे और समय से पूरा काम करने पर बहुत ध्यान देते थे। संत गुरु रविदास जी भारत के उन चुनिंदा महापुरुषों में से एक है जिन्होंने अपने रूहानी वचनों से संसार को एकता, भाईचारा पर जोर दिया। रविदास जी की अनूप महिमा को देख कई राजा और रानिया इनकी शरण मे आकर भक्ति मार्ग से जुड़े ।
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Sant Guru Ravidas Ji |
जीवन भर समाज मे फैली कुरीति जैसे जात-पात के अंत के लिए इन्होंने पूरा ध्यान लगाया था। रविदास जी के गुरु संत रामानन्द जी थे। उन्हीने आध्यात्मिक ज्ञान अर्जित किया। संत रविदास जी ने स्वामी रामानंद जी को कबीर साहेब जी के कहने पर गुरु बनाया था। जबकि उन्होंने वास्तविक आध्यात्मिक गुरु कबीर साहेब जी ही थे। उनकी समयानुपालन की प्रवित्ति तथा मधुर व्यवहार के कारण उनके संपर्क में आने वाले लोगो से वे बहुत प्रसन्न रहते थे।
संत गुरु रविदास जयंती पर कविता | Poem on Ravidas Jayanti in Hindi
संत रविदास
माघ पूर्णिमा को काशी में
था एक संत पैदा हुआ
नाम था रविदास इनका
संवत 1398 में जन्म हुआ ।
समाज की कुरीतियों पर
करारा कुठाराघात किया
जात-पात का अंत करने में
आप ने बहुत काम किया ।
अपने रूहानी वचनों से
सब का मन मोह लिया
एकता और भाईचारे से
समाज को नवदर्शन दिया ।
मन चंगा ते कठौती में गंगा
जैसे आप ने पद थे रचे
अंधविश्वास अंधश्रद्धा पर
अपनी लेखनी से तंज कसे ।
राम कृष्ण रहीम सब एक
अलग अलग बस नाम
वेद पुराण कुरान सब ग्रंथ
करते एक का ही गुणगान ।
अभिमान बड़प्पन तजो
बस तो ही मिलें भगवान
गर अहंकार हावी रहा
ना बन पाओगे इंसान ।
अर्जुनदेव ने गुरुग्रंथ में
दिया 40 पदों को स्थान
मीराबाई बनी थी शिष्या
ऐसे आप पुरुष महान ।।
-डॉ मुकेश अग्रवाल
प्रारम्भ से ही रविदास जी बहुत परोपकारी तथा दयालु थे और दूसरों की सहायता करना उनका स्वभाव बन गया था। साधु संतों की सहायता करना उनको विशेष आनंन्द मिलता था वे उन्हें प्रायः बिना मूल्य लिए जूते भेंट कर दिया करते थे। उनके स्वभाव के कारण उनके माता-पिता उनसे अप्रसन्न रहते थे कुछ समय बाद उन्होंने रविदास तथा उनकी पत्नी को अपने घर से निकाल दिया। रविदास जी पड़ोस में ही अपने लिए एक अलग इमारत बनाकर तत्प्रता से अपने व्यवसाय का काम करते थे और शेष समय ईश्वर-भजन तथा साधु-संतो में ध्यान देते थे।
रविदास जी ने ऊँच-नीच की भावना तथा ईश्वर-भक्ति के नाम पर किये जाने वाले विवाद को सारहीन तथा निरर्थक बताया और सबको परस्पर मिलजुल कर प्रेम पूर्वक रहने का उपदेश दिया। वे स्वयं मधुर तथा भक्ति पूर्ण भजनों की रचना करते थे।और उन्हें भाव-विभोर होकर सुनते थे उनका विश्वास था कि राम, कृष्ण, करीम, राघव आदि सब एक ही परमेश्वर के विविध नाम है। उम्मीद करता हूं आपको इनके जीवन के बारे मे बहोत कुछ जानने को मिला होगा।