Rabindranath Tagore Poems in Hindi |रबीन्द्रनाथ टैगोर कविता

भारत में जन्मे महान कविता लेखक गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर जिन्हे साहित्य क्षेत्र में नोबल पुरुस्कार से सम्मानित किया गया। रवींद्रनाथ ठाकुर जी ने कविता, साहित्य, गीत, नाटक में काफी ऊंचा मकाम आसिल किया इन्होंने बचपन में रहते हुए जब ये आठ साल के हुआ तो रविन्द्र ने अपनी पहली कविता लिखी। रविन्द्रनाथ टैगोर का जन्म 7 मई 1861 को कोलकाता के देवेन्द्र नाथ के घर हुआ। इनकी शिक्षा सेंट जेविर्स स्कूल मे हुई उसके बाद इनका दाखिला इंग्लैंड देश ब्रिटोन शहर के एक हाई स्कूल में कराया गया ताकि ये बैरिस्टर बन सके। लंदन विश्वविद्यालय में कानून की पढ़ाई अधूरी छोड़ के वापस 1880 मे बिना डिग्री लिए भारत आ गए। 



महाकवि गुरुदेव जीका कहना था कि "जब तक मैं जिंदा हूं मानवता के ऊपर देशभक्ति की जीत नहीं होने दूंगा" रविन्द्र जी ने है भारत की राष्ट्र गीत 'जन गण मन' और बांग्लादेश का राष्ट्रीय गीत 'आमार सोनार बांग्ला' लिख कर ये दुनिया के पहले कवि बने जिनके द्वारा लिखी गीत दो देशों का राष्ट्रीय गीत बना। गीतांजलि इनकी ही रचना है जो पूरी दुनिया मे अपना एक अलग किरदार बना रखा है।

रबीन्द्रनाथ टैगोर कविता इन हिन्दी | Rabindranath Tagore Poems in Hindi

तेरा आह्वान सुन कोई ना आए, तो तू चल अकेला,
चल अकेला, चल अकेला, चल तू अकेला!
तेरा आह्वान सुन कोई ना आए, तो चल तू अकेला,
जब सबके मुंह पे पाश..
ओरे ओरे ओ अभागी! सबके मुंह पे पाश,
हर कोई मुंह मोड़के बैठे, हर कोई डर जाय!
तब भी तू दिल खोलके, अरे! जोश में आकर,
मनका गाना गूंज तू अकेला!
जब हर कोई वापस जाय..
ओरे ओरे ओ अभागी! हर कोई बापस जाय..
कानन-कूचकी बेला पर सब कोने में छिप जाय

हम होंगे कामयाब एक दिन कविता | Motivational Poem by Rabindranath Tagore


होंगे कामयाब,
हम होंगे कामयाब एक दिन
मन में है विश्वास, पूरा है विश्वास
हम होंगे कामयाब एक दिन।
हम चलेंगे साथ-साथ
डाल हाथों में हाथ
हम चलेंगे साथ-साथ, एक दिन
मन में है विश्वास, पूरा है विश्वास
हम चलेंगे साथ-साथ एक दिन।

प्रकृति पर कविता | Rabindranath Tagore Poems in Hindi on Nature

मेरा शीश नवा दो अपनी
चरण-धूल के तल में।
देव! डुबा दो अहंकार सब
मेरे आँसू-जल में।
अपने को गौरव देने को
अपमानित करता अपने को,
घेर स्वयं को घूम-घूम कर
मरता हूं पल-पल में।
देव! डुबा दो अहंकार सब
मेरे आँसू-जल में।
अपने कामों में न करूं मैं
आत्म-प्रचार प्रभो;
अपनी ही इच्छा मेरे
जीवन में पूर्ण करो।
मुझको अपनी चरम शांति दो
प्राणों में वह परम कांति हो
आप खड़े हो मुझे ओट दें
हृदय-कमल के दल में।
देव! डुबा दो अहंकार सब
मेरे आँसू-जल में।

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