वाराणसी शहर जो उत्तर प्रदेश राज्य का सबसे प्रसिद्ध जिला है इस शहर को पूरी दुनिया में जाना जाता ही क्योंकि ये वही शहर हैं जहा हिन्दू धर्म के भगवान भोलनाथ शंकर आदिदेव का जन्म हुआ था। वाराणसी को आज के समय इसे बनारस के नाम से भी जाना जाता और इस शहर को काशी भी कहा जाता है। बनारश शहर में भगवान बुद्ध और महावीर स्वामी की बहोत प्रसिद्ध प्राथना स्थल भी मजूद है।
काशी शहर में दूसरे देशों के लोग घुमने और प्राथना(पूजा) करने आते है क्योंकि इस शहर में हिन्दू धर्म के कई देवता निवाश करते ऐसा हिन्दुओ का मानना है ठीक उसी प्रकार भगवान गौतम बुद्ध और स्वामी महावीर को मानने वाले भी बहोत ज्यादा आवादी में लोग बनाराश में प्राथना करने आते है।
वाराणशी पर कविता | Poem on Varanasi in Hindi
इस शहर में वसंत
अचानक आता है
और जब आता है तो मैंने देखा है
लहरतारा या मडुवाडीह की तरफ़ से
उठता है धूल का एक बवंडर
और इस महान पुराने शहर की जीभ
किरकिराने लगती है
जो है वह सुगबुगाता है
जो नहीं है वह फेंकने लगता है पचखियाँ
आदमी दशाश्वमेध पर जाता है
और पाता है घाट का आखिरी पत्थर
कुछ और मुलायम हो गया है
सीढि़यों पर बैठे बंदरों की आँखों में
एक अजीब सी नमी है
और एक अजीब सी चमक से भर उठा है
भिखारियों के कटरों का निचाट खालीपन
तुमने कभी देखा है
खाली कटोरों में वसंत का उतरना!
यह शहर इसी तरह खुलता है
इसी तरह भरता
और खाली होता है यह शहर
इसी तरह रोज़ रोज़ एक अनंत शव
ले जाते हैं कंधे
अँधेरी गली से
चमकती हुई गंगा की तरफ़
इस शहर में धूल
धीरे-धीरे उड़ती है
धीरे-धीरे चलते हैं लोग
धीरे-धीरे बजते हैं घनटे
शाम धीरे-धीरे होती है
यह धीरे-धीरे होना
धीरे-धीरे होने की सामूहिक लय
दृढ़ता से बाँधे है समूचे शहर को
इस तरह कि कुछ भी गिरता नहीं है
कि हिलता नहीं है कुछ भी
कि जो चीज़ जहाँ थी
वहीं पर रखी है
कि गंगा वहीं है
कि वहीं पर बँधी है नाँव
कि वहीं पर रखी है तुलसीदास की खड़ाऊँ
सैकड़ों बरस से
कभी सई-साँझ
बिना किसी सूचना के
घुस जाओ इस शहर में
कभी आरती के आलोक में
इसे अचानक देखो
अद्भुत है इसकी बनावट
यह आधा जल में है
आधा मंत्र में
आधा फूल में है
आधा शव में
आधा नींद में है
आधा शंख में
अगर ध्यान से देखो
तो यह आधा है
और आधा नहीं भी है
जो है वह खड़ा है
बिना किसी स्थंभ के
जो नहीं है उसे थामें है
राख और रोशनी के ऊँचे ऊँचे स्थंभ
आग के स्थंभ
और पानी के स्थंभ
धुऍं के
खुशबू के
आदमी के उठे हुए हाथों के स्थंभ
किसी अलक्षित सूर्य को
देता हुआ अर्घ्य
शताब्दियों से इसी तरह
गंगा के जल में
अपनी एक टाँग पर खड़ा है यह शहर
अपनी दूसरी टाँग से
बिलकुल बेखबर!
बनारस के घाटों पर कविता | Poem on Banaras in Hindi
एक बनारस मृत्यु है और एक बनारस जीवन;
एक बनारस जेठ दुपहरी, एक बनारस सावन!
एक बनारस गरम जलेबी, एक बनारस लस्सी;
एक बनारस चौक पे बसता, एक बनारस अस्सी!
एक बनारस मेला ठेला, एक बनारस मॉल;
एक बनारस गमछा ओढ़े, एक सिल्क की शॉल!
एक बनारस शहनाई है, एक बनारस कजरी;
एक बनारस ना धिन धिन्ना, एक है चैती-ठुमरी!
एक बनारस जाम में फँसा, एक भाँग पी टल्ली;
एक बनारस सड़क पे घूमे, एक बनारस गल्ली!
एक बनारस घाट पे उतरा और चढ़ गया नैया;
एक बनारस साँड़ से बचा तो पीछे पड़ गयी गैया!
एक बनारस सेल्फी लेता, एक बनारस मस्त;
एक बनारस हँसता- गाता, एक बनारस पस्त।
एक बनारस पिज़्ज़ा-नूडल, एक बनारस पान;
एक बनारस चाट कचौड़ी और ठंडाई छान!
एक बनारस महादेव का, एक बनारस गंगा;
एक बनारस ऐसा ऐंठा, बच के लेना पंगा!
एक बनारस बाकी सबका, दिखता है जो बाहर
अपना तो है वही बनारस बसा जो अपने अंदर
बनारस की गलीयों पर कविता | बनारस की गलीयों पर शायरी हिंदी
वो गलियों के भुलक्कड़ रास्ते
हर नुक्कड़ पर चाय और नाश्ते,
चाचा के राजनीति कि बाते
सड़कों से जाम के शोर है आते,
शाम की महफ़िल का मैं दीवाना
रोशन हैं सड़के,
गंगा आरती में वो भीड़ का आना
बाबा के दरबार की भक्ति
माँ अन्नपूर्णा की शक्ति,
संकटमोचन का आशीर्वाद
गंगा का पावन घाट
घंटो की आवाज से यहां सवेरा है
घाटों पर साधु संतों का बसेरा है।
यहाँ के लोगों का अलग ही व्यवहार है
अनजानों से भी दोस्तों जैसा प्यार है।
कितना कुछ लिख दू बनारस के प्यार में
कम पड़ जाते है शब्द इसके बखान में।
बनारस पर भोजपुरी कविता | Kashi Par Kavita
चकाचक बनारसी की कविता | Hindi Poem on Varanasi