जब संसार का निमार्ण हो रहा था तो संसार को चलाने के लिए उसे आगे बढ़ाने के लिए भगवान ने नारी को बनाया जिसे हम आज माँ, बहन, पत्नी और कई नामो से जानते है। नारी से ही हमारा जन्म हुआ। नारी जाती की सुरुआत "बेटी" से होती हैं - लोगों के मन में यह भावना है कि बेटी श्राप होती हैं इस लिए उसे वो गर्भ में ही मार डालते है। लोगों के मन से यह भावना निकालने के लिए " बेटी बचावो बेटी पढ़ाओ " जैसी योजनाए भी छोटी है।
बेटियों को श्राप हमारे ही कारण माना जाता हैं, हम ही लोग दहेज के लिए बहुओ को मारते, जलाते और दहेज न देने के कारण उनके साथ बुरा व्यवहार करते हैं, इन्ही कारणों के वजह से एक परिवार अपने घर में बेटी को जन्म नहीं देने देता उसे माँ के कोख में ही मार देते है। आज सभी को बेटा चाहिए अगर बेटे इतने ही अच्छे होते तो आज सारे वृद्ध आश्रम खाली पड़े होते। इन बुराइयों को हमे खुद ही मिटाना पड़े गा अपनी माताओ, बहनो का सदैव सम्मान करो और उन्हें आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करो। इन्ही सब बातों को ध्यान में रखते हुए मैने ये कविता लिखी है।
बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ पर कविता| Hindi Kavita on Beti Bachao Beti Padhao
वजूद बेटियों का ख़तरे में, मिलजुल कर हमें बचाना है।
शिक्षित करो क़ाबिल बनाओं,जीने की राह दिखाना है।
चूल्हा चौका, बर्तन करती,
गेह को स्वर्ग बनाती है।
सहे खुशी से प्रसव पीड़ा,
तुमको दुनिया मे लाती है।
मातृशक्ति का कर्ज हम पर, हमको भी फ़र्ज़ निभाना है।
शिक्षित करो, क़ाबिल बनाओ ,जीने की राह दिखाना है।
हर साँचे में ढल जाती ये ,
बिना सिखाये गुण जाती है।
माँ-बाप का दर्द समझती
कहे बिना ही सुन जाती है।
तनुजा की परछाई बन कर, हौंसला हमको बढाना है।
शिक्षित करो,क़ाबिल बनाओ,जीने की राह दिखाना है।
मत डालो पैरों में बेड़ी,
स्वछंद इन्हें विचरने दो।
इनके सपनों को पंख लगा,
उड़ान ऊँची तुम भरने दो।
बेटियाँ बचाओं व पढाओं , नारे को सफल बनाना है।
शिक्षित करो,क़ाबिल बनाओ ,जीने की राह दिखाना है।
बेटे घर का वंश बढाते,
सरताज़ तभी कहलाते है।
बेटी कुलों का रखती मान,
सम्मान दे नही पाते है।
भार नही है बेटी "सुनीति",अब दुनिया को बतलाना है।
शिक्षित करो,क़ाबिल बनाओ,जीने की राह दिखाना है।
Beti Bachao Beti Padhao Short Poem in Hindi
बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ
"बिल्कुल नहीं होती बोझ"
हम बेटियां फक्र होतीं हैं,
जहां जाती हैं ताज होती हैं
समझ सको तो समझ लो।
हर जगह छा गई हैं हम।
देख लो बॉर्डर में भी हम ही हैं।
क्या आसमां क्या ज़मीं
जहां देखो वहां हमीं-हम हैं
सुभासिनी गुप्ता
Emotional Long Poem on Beti in Hindi
सदियों से दुख सहती आई, बेटी यहाँ धरा पर,
बेटी बचाओ बेटी पढाओ के लगते नारे यहां पर,
उन बेटी के संग क्रूरता बर्दाश्त की सीमा पार हुई,
क्या बंद करें सन्दूक में बेटी बोलो रखें कहां पर।
नहीं सुरक्षित कहीं भी बेटी, शहर नगर या गांवों में,
चाहे रह ले शीश महल में, या पीपल की छांवों में,
बेशर्म बेहूदों की लोलुप आंखे, रहती हैं उनके ऊपर,
नर पिशाच मौका तलाशते, लगे रहते नित दावों में।
गर सुरक्षित रख सके नहीं तो, क्यों बेटी पैदा करना,
क्या उनके भाग्य में लिखा, बस दरिंदो के हाथों मरना,
जो बलात्कार हत्यामें शामिल उनका शिश्न काटफेंको,
ऐसे जाहिल नर राक्षस होते हैं, उनसे काहे को डरना।
बेटी को ना पुलिस न्यायालय ना सरकार बचा पाएगी,
बलात्कार हत्यापर फांसी देदो क्या बेटी वापस आएगी,
कुछ उपाय ऐसा करना है बलात्कार हत्या ना होने पाए,
जो दुख दर्द झेला बच्ची ने क्या पैसे से पूरी हो पाएगी।
वैदिक संस्कृति अपनाओ पाश्चात्य संस्कृति को छोडो
अंग्रेजियत ना हाबी होने दो नग्नता से मुख सब मोडो
बच्चों को इतिहास सिखाओ वीर शिवा राणा गोविन्द का
किसी घृणित घटना पर नेताओं राजनीति करना छोडो।
भारत की शिक्षाप्रणाली केवल नौकर, बेरोजगार बनातीहै
मालिक किसान या नियोक्ता बननेके गुण नहीं सिखाती है
पराई मां बहन बेटी को अपनी मां बहन बेटी समझे जन
ऐसी नैतिकता व पावन सदाचार का पाठ कहां पढाती है।
बच्चों को संस्कार सिखाओ ना जाहिल ना शैतान बने,
मात पिता गुरु धर्म निभाओ कोई बच्चा ना हैवान बने,
अगर सुकर्म में लिप्त रखोगे ना मन भटकेगा इधर उधर,
रोजगार परक शिक्षाप्रणालीहो कोई बच्चा ना बेइमानबने।