Poetry on Nature Hindi:- मानव समाज का निर्माण करते समय ईश्वर ने प्रकृति को भी बनाया था ताकि इंसान को किसी वस्तु की आवश्कता पड़े तो वो प्रकृति के गोद से ले सके जैसे खाने के लिए फल सब्जियां, पीने के लिए स्वच्छ जल, और भी कई संसाधन दिए परंतु मानव ने Nature की अहमियत नहीं। जिसके कारण आज कई गांव-शहर पानी के लिए कई परेशानी का सामना करना पड़ रहा है फिर भी मनुष्य अपने वर्तमान जीवन में पर्यावरण का संरक्षण नही कर रहा है।
Best Poems On Nature In Hindi - प्रकृति पर हिंदी कविताएं
प्रकृति ने दिया सब कुछ,
आओ कुछ उसकी बात करे
पैदा होते ही साया दिया,
मां के आंचल सा प्यार दिया।
सूरज जग को रोशनी दी,
चांद शीतलता सी रात दी मां
(धरती) ने अन्न दिया,
पेड़ो ने प्राण वायु दी
आग दी जलाने को तो,
भुजाने को भी जल दिया
वादियां दी लुभाने को तो,
शांति के लिये समुद्र दिया
सब कुछ दिया जो था उसका,
सोचो हमने क्या उसे दिया
करना था संरक्षण प्रकृति का,
हम उसके भक्षक बन बैठे जो भी
दिया प्रकृति ने,
हम उसके दुश्मन बन बैठे है
प्राण वायु जो देते पेड़,
उनको भी हमने काटा है
करके दोहन भूमिगत जल का,
उसका स्तर गिराया है
शांत है
प्रकृति पर देख रही है,
हिसाब वो पूरा लेगी
कुछ झलकियां दिख
रही है ।
अभी आगे बहुत दिखेगी
विनाश दिखाएगी एक दिन,
प्रलय बड़ा भारी होगा
अभी समय है सोच लो,
बर्बादी को रोक लो।
नारे नहीं लगाने बस,
जमीनी स्तर पर काम करो
एकता का सूत्र बांधकर,
आओ एक नया आगाज करो
प्रकृति से प्रेम करो,
प्रकृति से प्रेम करो
Latest Prakriti Par Kavita 2021 Hindi - प्रकृति की कविता
सुनो, प्रकृति की आकुल पुकार,
कहती है यह, वृक्ष मत काटो,
छलनी हो रहा शरीर हमारा,
अब तो हमारा क्रंदन सुन लो।
धरा भी क्षण-क्षण कह रही,
वृक्ष प्राणों का है आधार।
बंजर से इस सूने तन पर,
वृक्ष धरती का है श्रृंगार ।
प्राण वायु कहाँ से हमें मिले,
जब दूषित हो रही हवाएं।
चीख-चीख कर यह बता रही,
प्रलय से जीवन कैसे बचाएं।
मत चलाओ शस्त्र वृक्ष पर,
मानो यह ईश्वर का अनुदान है।
इन पेड़ों से भूजल स्तर भी बढ़ेगा,
समस्त जीवन हेतु ये वरदान है।
- नेहा झा मणि वाराणसी
Poem on Prakariti in Hindi - प्रकृति मां पर कविता
प्रकृति फिर से हाथ बढ़ाती है
हमें ऑक्सीजन देना चाहती है
हमें असहाय लाचार देखकर
मां मही का हृदय भर आया है
हम बालक कितने नालायक है
कि दोहन का कृपाण चलाया है।
अक्षम्य अपराध किया है हमने
भू से नभ तक कुछ ना छोड़ा है
अंधा धुंध पेड़ों को काटा हमने
प्राणवायु और जल भी थोड़ा है
वन ना छोड़े वन्यजीव ना छोड़े
भून भून खा गये कीड़े मकोड़े
प्रकृति तो हमे भर भर देती है।
फल फूल शाक दवा दाल मेवे
यह कैसी मानव की मानवता
कि हम उन्हीं के प्राण ले लेवे
ये पाप का घड़ा ही तो फूटा है
कोरोना ने कोहराम मचाया है
मछली सा मानव तड़प रहा है
ओषजन बिन प्राण गंवाया है
अब भी संभलो खुद को बचालो
फिर अवनी मां का आंचल पालो
आओ आज अभी पेड़ लगाए हम
भूमंडल शस्य श्यामला बनाएं हम
इकोफ्रेंडली ईंधन ही प्रयोग करेंगे
मानवजाति की रक्षा अवश्य करेंगे
Prakiriti Par Poerty Hindi - प्रकृति के दर्द पर कविता
करते रहते कुतर- कुतर कर,
प्रकृति माता के गर्भ में घाव।
समझ गए प्रकृति का भाव?
कर रहे तरु पर प्रहार,
अंधाधुंध कानन रहे काट।
दर्द से मां ने एक करवट क्या ली,
उजाड़ रहे बेजुबानों का घर,
बरपा रहे प्रकृति पर कहर ।।
कितना कुछ देती हमें प्रकृति,
तृण तरु सानु मनोहर सुकृति।
मानवीय सांसों का हलाहल पी.
नैसर्गिक आभूषण से भर देती॥
मगर हम तो ठहरे इन्सान,
भरा है हममें मिथ्याभिमान ।
खोद कर हृदय धरा का,
कर रहे अपना ही नुकसान।।
बरसेगा बन जब अंगार गगन,
ना बुझा पाएगा कोई सारंग।
बंद करो निज स्वार्थ दोहन,
शुरू करो धरा पर वृक्षारोपण।
वरना समझ रहे हो जिसे विकास,
वास्तव में विनाश की शुरुआत।
जब मचाएगा कुदरत उपद्रव,
जीवन जीना हो जाएगा दुश्वार ।।
Small Poem On Nature's in Hindi
प्राथमिक किरणें धरा पर,
सूर्य की आने लगी हैं।
गीत स्वागत के, हवा
उनके लिए गाने लगी हैं।।
सघन सुंदर डालियों पर
झूलते हैं फूल प्यारे।
सुरभि का विस्तार करते-
हैं समीरण के सहारे।।
हरित तरु की टहनियों पर
चपल चिड़ियों का बसेरा।
चहचहाती, गीत गाती,
और यह पावन सवेरा।।
पक्षियों के कंठ में जो,
गीत मधुरिम भर रहा है।
हैं यहीं ईश्वर कहीं,
शायद वही सब कर रहा है।।
प्रकृति पर परमात्मा का।
यह अगोचर आवरण है।
देखिए कितना मनोरम,
शान्त यह वातावरण है।।
दृश्य ये मन को मुदित कर,
शक्ति का संचार करते।
और चिन्ताग्रस्तता से,
मुक्त करते, पार करते।।
प्रकृति की आराधना में-
लीन,मंत्रोच्चार करते।
सर्वथा स्वच्छंद भंवरे,
कर्णप्रिय गुंजार करते।।
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आशा करता की ऊपर दिए गए सुंदर कविताओ को पड़ कर आपको आनंद आया होगा और आप को नेचर की अहमियत भी समझ आई होगी।